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नारायण ५८२३ वर्षों पहले श्री वेदव्यास ऋषि रूप में भारत देश में अवतार लिए हैं। मानवों की पढाई के लिए वेदों को महर्षि व्यास उद्धार किये हैं। वेदसारात्मकरूपवाले महाभारत की रचना भी करडाली है। संस्कृत में रचे गये महाभारत पंच पाण्डवॊं की निरूपण की गयी है। सभी देश कालों में सब को जीवन मार्गदर्शन करनेवाला महान् शास्त्रग्रंथ हैं महाभारत।

द्यूत में हार कर शर्तानुसार वनवास, अज्ञातवास पूरा होते ही अपने हकवाला राज्यभाग को वापास दॆने के लिये कहें हैं पाण्डव। पाण्डवॊं के राजदूत बनकर श्रीकृष्ण कौरवों के पास जा कर चोटा सा भूखंड देने की समझाते है, कौरवों ने उसको भी नकार दिया हैं। बाद १८ दिनों का महा संग्राम कुरुक्षेत्र में संपन्न हुवा। युद्ध में कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बन कर भाग लिया है। रनतंत्र का बारें में अपनी सलाह सूचन देते हुए कृष्ण ने पाण्डवॊं की रक्षा की हैं। पाण्डव जीत पाए। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में ३६ वर्ष पर्यन्त राज्यभार किया है।

कौरवों के पिता धृतराष्ट्र अन्धा है। सञ्जय उस का सूत है। कुरुक्षेत्र में चलाया गया १० दिन के युद्ध को सञ्जय ने नजदीक से देखा है। गबरे हुए सञ्जय अचानक धृतराष्ट्र के पास जाकर भीष्म पात की खबर देता है। सुनते वह आरम्भ से अब तक के विवरों को सञ्जय से पूछता है। व्यास के अनुग्रह बल से तथा तुम्बुर गन्धर्व होने के नाते सञ्जय युद्ध सम्बन्धी सभी विवरणों को यथावत् राजा को निवेदन करता है। धृतराष्ट्र के सारे प्रश्नों को योद्धावों की योचना समझकर और देखते - सुन्ते जैसे समर्पक रूप से उत्तर देता है। इस तरह पहले दिन युद्ध शुरु होने से पहले कृष्ण-अर्जुन को बातचीत ही भगवद्गीता, सञ्जय के माध्यम से निकली है।

यहाँ हैं कृष्ण सन्देश और कन्नड़ भाषा में इस का छोटी सी समीक्षा। दशाधिक अर्थवाली गीता की यह कृष्ण सिद्धान्तों को अविरुद्ध वाला एक चिन्तन समर्पण सेवा रूप की मेरी रुरुदक्षिणा हैं।

इस जितासमीक्षा को अनेक भाषान्तर में दी गयी हैं। भाषान्तर में सहकार देनेवालो सब महनीयोंको हार्दिक अभिवन्दनायॆं।

मंगलाचरण

नारायणं सुर-गुरुं जगदेक-नाथं भक्त-प्रियं सकल-लोक-नमस्कृतं च ।
त्रैगुण्य-वर्ज्जितमजं विभुमाद्यमीशं वंदे भवघ्नं अमरासुर-सिद्ध-वंद्यम् ॥
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरये ॥